लेखनी कहानी -01-Dec-2021
पापा ये पेपर्स रखें हैं,, इन पर सोच-समझकर शीघ्र ही हस्ताक्षर कर दीजिए।
पेपर्स कैसे पेपर्स ?
पापा आप अच्छे से जानते हैं। मम्मा की मुक्ति के पेपर्स हैं ये। अब मम्मा खुद भी छुटकारा चाहती है वो भी सांस लेकर खुल कर जीना चाहती है।
क्या? खुल कर जीना चाहती है। तो अब तक क्या बिना सांस के ही जी रही थी?
जी पापा! बिल्कुल सही कहा आपने। वो जीना जिसमें कोई उमंग ही ना हो,, सांस लेना पर बेजान, बिन सांस लोथड की तरह खुद को ढोना तो मरे समान ही है ना।
पर मैंने तो कभी उसे खुद से बांधकर नहीं रखा। न ही कभी किसी बात के लिए बाध्य किया।
जी हां बिल्कुल पापा मानती हूं मैं कि आपने मम्मा को कभी बाध्य नहीं किया?
पर मैं पूछती हूं कि क्यूं? क्यूं आपने कभी मम्मा को खुद से बध्य नहीं किया।
आप तो मम्मा को डोली में बिठाकर वचन देकर, हर कदम पर उनका साथ निभाने का वादा करके रस्म-रीतरिवाज के बन्धन में बांध कर लाये थे ना। तो फिर क्यूं और क्यूं आपने कभी मम्मा को खुद से नहीं बांधा।
उनकी खुशी, उनके आंसू , उनका गम,उनकी चाहनाएं
उनका उठना-बैठना, चलना-फिरना, पहनना-ओढना,
उनके आचार-विचार, उनकी सोच-समझ से आपका नाता
क्यूं नहीं रहा।
हर मोड़ हर कदम पर वो आज तक अब तक अकेली क्यूं है?
आपने कभी मम्मा को बध्य नहीं किया क्योंकि आपने कभी खुद को उनसे बांधा ही नहीं। इस घर का आपकी जिंदगी का हिस्सा होकर भी हमेशा अलग-थलग ही रही।
आपने कभी मम्मा को खुद से बांधा नहीं। ना ही कभी आपने उनके दिल के अकेलेपन को कभी टटोला। कभी कोई वजह दी उन्हें मुस्कुराने की,, कभी उनकी सिसकियां सुनीं, जो अपने बहते आंसुओं में डुबोते हुए तकिये में छिपा के वो जीती रहीं।
उन्हें क्या चाहिए,, क्या पसंद है क्या नापसंद,, उनकी क्या जरुरत है कुछ चाहनाएं उन्हें होतीं होंगी,, ये जानना क्या आपका कर्तव्य नहीं था।
आप उन्हें बन्धन में बांध के ले आए पूरा हो गया आपका कर्तव्य?
पर-पर मैं तो उसे तुम्हारी खुशी के लिए, तुम्हारी देखभाल के लिए लाया था। तुम इतनी छोटी थी, केवल १० दिन की,, तुम्हें एक मां की सर्वाधिक आवश्यकता थी। और फिर मैं तो दूसरी शादी करना ही नहीं चाहता था,, ये सबका मिला-जुला विचार था जो मुझ पर थोपा गया था कि,, १० दिन की बच्ची बिन मां के कैसे रहेगी। तुम्हारी खातिर ही जबरदस्ती मना-मना कर ही मेरा और सुनीति का विवाह करवाया गया। और मैंने सबकी ख़ुशी की खातिर उसे घर-परिवार खाना-पीना पहनना-ओढना सब कुछ दिया। तुम्हारी देखभाल तुम्हारी ललना-पलना की खातिर ही तो।
जी पापा सही कह रहे हैं आप। मेरी खातिर ही तो मम्मा इस घर में लायी गयी थी **एक कांट्रेक्ट के तहत**
सबने मिलकर आप दोनों को बांध दिया एक उम्र भर के बन्धन शादी में जो मात्र एक कांट्रेक्ट था मेरी संभाल का।
अपनी सारी जिम्मेदारी बखूबी मेरी मम्मा ने हरदम निभायी, भूल गयी वो कि वो भी एक औरत है उसका भी जीवन है। उसे तो बिन पत्नी का दर्जा मिले ही एक संतान मिल गयी,, अच्छा खाना-पीना , जीवन का गुजारा मिल गया। और क्या चाहिए था उसे जीने के लिए। एक नाम कि वो "श्रीमान शैल-बिहारी वर्मा जी" की पत्नी उनकी बिन मां की दुधमुंही बच्ची की मम्मा है। मेरी खातिर ही तो उन्होंने
अपनी सारी उम्र यूं ही खपा दी मुझे हंसाने,खिलाने,-पढाने,
शिक्षा व संस्कार देने, मेरी खुशी में खुश होने मेरी तकलीफ में मेरा हौंसला बनने, सफल बनाने, मुझे आत्मविश्वासी बनाने, जीवन में कुछ बनकर दिखाने, हासिल करने में ही लगा दी।
मम्मा को जिस कांट्रेक्ट के तहत आप सब, वर्मा खानदान यहां लाया था उन्होंने सहर्ष स्वीकार करके भली-भांति निभाया और आज उनकी इस अद्भुत मोहब्बत का ही नतीजा है कि मैं इतनी बड़ी वकील बन चुकी हूं,, कि
आज हर व्यक्ति अपने उलझे हुए मुद्दे को सुलझाने को मुझे ही हायर करना चाहता है।
हां मेरी बेटी,, आज तुम कामयाबी की हर सीढ़ी पार करती चली जा रही हो,, इसमें तुम्हारी मम्मा सुनीति का बड़ा हाथ जरुर है, उसने तुम्हें अपनी बेटी की तरह पाला पूरा ध्यान दिया तुम पर । तो क्या मैंने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया।
मैं तुम्हारा नाकाम पिता रहा।
नहीं पापा! आपने तो सबसे महत्वपूर्ण काम किया है।
अर्थ और धन कमाने का , आज के समाज में बिना धन के
कहां कुछ भी सम्भव हो पाता है। पर इतना धन आप किसके लिए कमाते रहें, मेरे लिए जो मेरे लिए ही आपके पास समय न था ,, यां मम्मा के लिए जिसे आपने अपने जीवन से चंद लम्हें भी न दिये सुकून के। उनकी किसी भावना को महत्व नहीं दिया।
आप कमाते रहे और हम दोनों उन टुकड़ों पर जीते रहे।
क्या आपके कमाने की वजह हम दोनों ही रहे।
नहीं पापा नहीं ,, आप कमाने में बिजी इसलिए रहे क्यूंकि
आप मेरी जन्म देने वाली मां आपकी पहली और आखिरी पत्नी को कभी भुला न सके दिल से अलग न कर सके, आप अपने को बिजी(व्यस्त) रखने को कमाने की राह में जुटाये रहे।
आज तक भी आप मम्मा के करीब नहीं आए, एक पत्नी का दर्जा आज तक नहीं दिया उन्हें।
जब एक स्त्री को अपने जीवन में पुरुष के सहारे की सर्वाधिक आवश्यकता होती है तब भी नहीं। मम्मा के माता-पिता- मेरे नाना-नानी के आक्समिक निधन के वक्त भी आपने न तो मां को कोई भावनात्मक सहारा दिया ना ही,, आपने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी समाज के सामने ही। वो बेचारी खुद ब खुद जूझती रही उस असहाय दर्द से।
ना ही अनीता और विनीता मासी की शादी के वक्त ही मम्मा का कोई साथ दिया। थोड़े से रुपये देकर आपको लगा कि आपने ही सारी मदद की मम्मा की।
और तो और आप मुझ से अपनी खुद की जायी संतान से भी हमेशा दूर-दूर और कटे-कटे रहे क्यूंकि आप यही मानते रहे कि मैं ही मां की मृत्यु का कारण बनी, मुझे जन्म देकर १० दिन के भीतर ही मां इस संसार से विदा लेकर चली गयी और मैं हू-ब-हू अपनी जन्म देने वाली मां की जेरोक्स कापी की तरहां अवतरित हुई इस जीवन में।
हां तो मैं बेहद प्यार करता था तुम्हारी मां मेरी सपना से, वही मेरे जीवन का हर सपना थी। जब सपना ही नहीं रही तो जिंदगी और सपनों का क्या अर्थ? फिर भी मैंने तुम दोनों के प्रति अपना दायित्व निभाया हमेशा।
हां तो हम कब मना कर रहे हैं कि आपने दायित्व नहीं निभाया हम दोनों की कागजी पालना का।
पर अब हम दोनों ही काबिल हैं अपनी-अपनी कागजी पालना का बीड़ा खुद उठाने में।
तुम दोनों अपनी-अपनी,, यां फिर अब सुनीति तुम्हारी कृपा तले जीने को राजी है।
नहीं कतई नहीं मेरी कृपा तले नहीं,, अपनी कृपा तले जीने को राजी है।
और वो कैसे?
मेरी मम्मा सुनीति शैल बिहारी वर्मा अब मेरी ही तरहां कि बिन मां की बच्चियों की सहायक जीवन-निर्णायका बनकर।
कल मम्मा के **गोद अपना घर आश्रम** का उद्घाटन है जिसमें आप सादर आमंत्रित हैं।
और मैं "अक्षिता सुनीति शैल बिहारी वर्मा" अपनी मम्मा के प्रति अपना फर्ज निभाने को कटिबद्ध हूं। और मैंने ये तय किया है कि अब मम्मा जिस अनबुझे 'मैरिज कांट्रेक्ट' के तहत इस घर में लायी गयी थी,, उस कांट्रेक्ट का अब मैं अन्त कराने का सफल प्रयत्न आगाज करती हूं।
इस शादी की असली वजह मैं ही थी ,, पर अब मैं पर्याप्त हूं स्वयं की देखरेख को तो इसकी अवधि खत्म होने पर मैं
इस अनुबंध को तोड़ने के लिए ये डिवोर्स पेपर्स लायी हूं।
अब आप इन पर हस्ताक्षर कर दीजिए।
मैं कर भी दूं हस्ताक्षर पर क्या सुनीति करेगी इन पर हस्ताक्षर। जी पापा मम्मा बिल्कुल करेंगी हस्ताक्षर।
अच्छा तो ये खेल खेल रही है वो,, तुम्हारी मम्मा बनकर
उसी ने उकसाया है ना तुम्हें। कीमत चाहिए उसे अपने जीवन की। तो बोलो क्या कीमत लगाएगी वो। जो चाहे जितना चाहे मैं देने को तैयार हूं।
नहीं पापा क्या देंगे आप उन्हें, उन्हें तो बस कुछ अहसास , थोड़ा प्यार-अपन्त्व और साथ चाहिए था परिवार का जो आप अब तक न दे सकें तो अब क्या देंगे मेरी मम्मा को।
अगर वाकई में कुछ दे सकते हैं तो इन पर साइन करके दे दिजिए डिवोर्स उस तकलीफ से जो पूरे २४ वर्षों से वो भोग रही हैं।
यां तो कांट्रेक्ट से मुक्त होकर यां फिर हमेशा के लिए भूल सुधार रुप में उन से उनकी हर भावना, हर अहसास से
नये सिरे से पुनः बंध कर अपने आप से उन्हें बध्य करते हुए सिर्फ और सिर्फ उनसे बाध्य होकर
मां की भरी हुई यादों को मुक्ति ए तिलांजलि देकर।।
Story by:: Ridima Hotwani 🌹
आपको कैसी लगी बतायें जरुर।
कहानी विषय से न्याय कर पाने में उचित रही कि नहीं।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
प्ररतियोगिता हेतु
Priyanka Rani
02-Dec-2021 12:13 AM
Nice mam
Reply
Gunjan Kamal
02-Dec-2021 12:12 AM
शानदार प्रस्तुति 👌👌
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kapil sharma
02-Dec-2021 12:08 AM
👍👍👍
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